बहुत हैरान-परेशान करने वाले सवाल पीछे छोड़ता है प्रद्युम्न मर्डर केस


8 सितम्बर 2017 को हुए रयान मर्डर केस की गुत्थी अब सुलझ चुकी है, कातिल मिल गया है और मोटिव भी मिल गया है। लेकिन पूरे देश को हैरान करने वाले इस हत्याकांड के सुलझने के साथ ही बहुत सारे ऐसे सवाल सामने आ खड़े हुए हैं जो आपको सोचने पर मजबूर करते हैं और एजूकेशन सिस्टम, स्टूडेन्ट्स साइकी और जांच एजेन्सी की ऐसी तस्वीरें सामने लाते हैं जो बेचैन करने वाली हैं।
कातिल छात्र का व्यावहार : इस हत्याकान्ड का सबसे चौंकाने वाला पहलू। एक ग्यारहवीं के छात्र ने केवल इसलिए प्रद्युम्न का गला रेत दिया क्योंकि वो एक्ज़ाम फोबिया से ग्रसित था। उसे टालना चाहता था। वजह तो हैरान करने वाली है ही, लेकिन उससे भी ज़्यादा आश्चर्यचकित करने वाला है, हत्या को करने का तरीका और इसे अन्जाम देने के बाद छात्र का व्यावहार। उसने प्रद्युम्न को यह कहकर टॉयलेट में बुलाया कि उसे कुछ हैल्प चाहिए, और वहां पीछे से उसका गला चाकू से रेत दिया। वो चाकू जो उसने कुछ दिनों पहले ही खरीद कर रख लिया था। जिसे लेकर वो स्कूल आ रहा था। हत्या के बाद पहले उसने वो चाकू कमोड में फेंका और फ़िर वो पूरी तरह से कूल, नॉर्मल रहकर गार्डनर के पास गया और उसे बताया कि टॉयलेट में ज़ख्मी बच्चा पड़ा है। फ़िर बड़े आराम से उसने एक्ज़ाम दिया और छुट्टी में घर चला गया। पूरी पूछताछ प्रक्रिया के दौरान वो नॉर्मल रहा। कोई रिग्रेट, कोई डर नहीं।और यह छात्र केवल साढ़े सोलह साल का है।
जिन लोगों को यह शक है कि छात्र ऐसा नहीं कर सकता वो ज़रा गुड़गांव स्टेट क्राइम रिकॉर्ड्स ब्यूरों (SCRB) के पिछले साल के आंकड़े देख लें, जो यह बताते हैं कि 2016 में हरियाणा में हुए कुल मर्डर्स में से 5 फीसदी, किशोरों द्वारा किए गए (16-18 एज ग्रुप, कुल 55 किशोर)। रेप करने वाले किशोरों का फीसद इससे ज़्यादा है (64 किशोर)। इसके अलावा भी गैंगरेप, किडनैपिंग, डकैती, लूट वगैरह के मामलों में भी बड़ी संख्या में किशोरों को अरेस्ट किया गया है।
मोटिव: हालांकि बहुत से लोग मोटिव को लेकर सवाल उठा रहे हैं, लेकिन साइकॉलिजिस्ट का कहना है (टाइम्स ऑफ इन्डिया रिपोर्ट) कि चूंकि बच्चे के घर में मां-बाप के बीच लड़ाई-झगड़े का माहौल था, वो हिंसा को लेकर न्यूट्रल हो गया था। और जहां तक एक्ज़ाम के प्रेशर का सवाल है, वो तो वाकई बहुत बड़ी चीज़ है, जिस घर में भी बोर्ड परीक्षा देने वाले बच्चे हैं वो इसे आसानी से समझ सकते हैं। पिछले कुछ सालों में खासकर कोचिंग नगरी कोटा समेत देश के कई हिस्सों में एक्ज़ाम/ एन्ट्रेन्स एक्ज़ाम प्रेशर के चलते छात्रों द्वारा आत्महत्या करने के मामले बढ़ते जा रहे हैं।
छात्र एक्स्ट्रीम स्टेप्स उठा रहे हैं, बस इस मामले में एक छात्र ने खुद को नुकसान पहुंचाने की बजाय किसी दूसरे की जान ले ली। बाकी देखते हैं, मामले की जांच जारी है, सच जो भी होगा सामने आएगा।
गुड़गांव पुलिस का रोल: रोचक बात हैं, गुड़गांव पुलिस ने तुरत-फुरत केस सॉल्व करके बस कन्डक्टर अशोक को पकड़ लिया, मर्डर वैपन भी बरामद हो गया और गुनाहगार ने कत्ल किया जाना कुबूल भी कर लिया। और फ़िर सीबीआई की जांच में बात पूरी तरह बदल जाती है। पुलिस द्वारा किसी बेगुनाह को गुनाहगार बनाने का इतना बड़ा और परोक्ष सुबूत दहलाने वाला है। हमें यह नहीं भूलना चाहिए कि केवल एक अशोक के अपराधी साबित होने से पूरी ड्राइवर, मेड, सर्वेन्ट्स, कामगारों पर शक का माहौल बन गया। उनके प्रति हम अपने बच्चों में डर बैठाने लगे, हमारे मन में डर बैठ गया।
यह बड़ी जांच का विषय है कि क्यों अशोक ने गुनाह कुबूला और वो चाकू कहां से आया जिससे खून तो नहीं हुआ पर गुड़गांव पुलिस ने उसे बतौर मर्डर वैपन ज़ब्त कर लिया। गुड़गांव पुलिस का यह कहना कि उनकी जांच शुरूआती दौर में थी, इसलिए उनसे गलती हुई, काफी नहीं है। इतनी बड़ी बात को गलती कहकर नहीं टाला जा सकता। पुलिस बहुत सशक्त होती है, औऱ उनमें अपराध और अपराधी को सूंघने की शक्ति होती है, ऐसी गलती पुलिस से होनी सम्भव ही नहीं। इस मामले में गुड़गांव पुलिस पर बड़ा मामला बनना चाहिए, क्योंकि अगर सीबीआई बीच में नहीं आती तो उन्होंने तो अशोक को ही फांसी के तख्ते तक पहुंचा दिया था.. जबकि हमारी माननीय अदालत का आदर्श वाक्य यह है कि भले ही 100 अपराधी छूट जाएं पर एक बेगुनाह को सजा नहीं होनी चाहिए। यह गम्भीर मामला है, गुड़गांव पुलिस और उन अधिकारियों की पूरी जांच होनी चाहिए जिनके दबाब में यह काम किया गया। ताज़ा खबर यह भी है कि सीबीआई मामले से जुड़े चार पुलिस अधिकारियों की जांच कर रही है।
स्कूल प्रबंधन का रोल: और अब सबसे महत्वपूर्ण बात- स्कूल प्रबंधन का इसमें क्या रोल रहा। इस पर सीबीआई की भी जांच जारी है कि कत्ल के बाद किस किस को फोन किया गया, क्यों सुबूतों को मिटाने, उनसे छेड़छाड़ करने की कोशिश की गई और इसमें और कौन कौन शामिल है। एक बार जांच पूरी होने दीजिए, सीबीआई पर कोई दबाब नहीं रहा, तो इससे जुड़े भी बड़े बड़े नाम सामने आएंगे।

Comments

Popular posts from this blog

सृष्टि से पहले सत् नहीं था, असत् भी नहीं, छिपा था क्या, कहां किसने ढका था....: ऋगवेद के सूक्तों का हिन्दी अनुवाद है यह अमर गीत

क्या आपने बन्ना-बन्नी, लांगुरिया और खेल के गीतों का मज़ा लिया है. लेडीज़ संगीत का मतलब केवल डीजे पर डांस करना नहीं है..

भुवाल रियासत के सन्यासी राजा की कहानी, जो मौत के 12 साल बाद फिर लौट आयाः भारत के इतिहास में जड़ा अद्भुत, अनोखा और रहस्यमयी सच