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Showing posts from December, 2016

ये रहीं प्रधानमंत्री के देश के नाम संबोधन की खास बातें...

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देश के केवल 24 लाख लोग मानते हैं कि उनकी सालाना आय 10 लाख से ज्यादा है।  कष्ट झेलना आप सबके त्याग की मिसाल। लोग मुख्यधारा में आना चाहते हैं। ईमानदारों को सुरक्षा देना प्राथमिकता।  अर्थव्यवस्था की मुख्यधारा में वापस आया काला धन।   कहीं कहीं सरकारी कर्मचारियों ने गंभीर अपराध किये हैं और आदतन फायदा उठाने का निर्लज्ज प्रयास भी हुआ है, इन्हें बख्शा नहीं जाएगा।  बैेंको से आग्रह- बैंक अब गरीबों को मध्य में रखकर अपने कार्य का आयोजन करें। बैंकों के पास इतना धन कभी नहीं आया था। निम्न मध्यम वर्ग के लिए नीतियां बनाएं। नई योजनाएं- प्रधानमंत्री आवास योजना के तहत शहरों में गरीबों को नए घर देने के लिए दो नई स्कीमें- 9 लाख तक के कर्ज पर 4 फीसदी की छूट, 12 लाख के कर्ज पर 3 फीसदी तक की छूट। गांव में 33 फीसदी ज्यादा घर बनाए जाएंगे। 2017 में गांव में लोग अगर घर का विस्तार करना चाहते हैं तो उन्हें 2 लाख रुपए तक के कर्ज में 3 फीसदी तक की छूट। रबी की बुआई में 6 फीसदी वृद्धि  हुई। जिन्होंने सहकारी बैंको से कर्ज़ लिया था उन किसानों के लिए- 60 दिन का ब्याज सरकार देगी, उनके अकाउंट में जाएगा।  तीन

ओला कैब ड्राइवर नसीम खान साहब ने कैब ड्राइवरों के प्रति मेरा नज़रिया बदल दिया...।

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यह हैं ओला कैब के ड्राइवर नसीम खान साहब। मूलत: उत्तर प्रदेश के बलिया, गाज़ीपुर निवासी नसीम फिलहाल दिल्ली के साकेत स्थित जेजे नगर के पास बने सिंगल रूम डीडीए फ्लैट में अपनी बीवी और एक छोटी बच्ची के साथ रह रहे हैं। इनका भाई भी इनके साथ रहता है जिसे यह इंजीनियरिंग करा रहे हैं। नसीम बलिया में रह रहीं अपनी मां और एक छोटी बहन के लिए हर महीने पैसे भी भेजते हैं। नसीम खान, नसीम खान साहब इसलिए हैं कि इन्होंने यह साबित किया है कि इंसान के पेशे से उसकी सीखने और दुनिया जानने की चाह पर रत्ती भर भी असर नहीं पड़ता और ना ही उसके सपने और ख्वाहिशे छोटी हो जाती है।  अगर इंसान वाकई में खुद को जागरूक करना चाहता है, आगे बढ़ना चाहता है तो परिस्थितियां उसके आड़े नहीं आती। आर्थिक स्थिति सुधारने के लिए गांव और अपने खेत छोड़कर दिल्ली आए नसीम खुद एक जागरूक इंसान हैं जो हर मुद्दे पर अपनी बेबाक और पूर्वाग्रह रहित राय रखते हैं। इनकी भाषा भी काफी अच्छी है और यह बहुत आसानी से अंग्रेजी के शब्द भी इस्तमाल करते हैं। इनसे बात करते समय आपको बिल्कुल नहीं लगेगा कि आप किसी टैक्सी ड्राइवर से बात कर रहे हैं। नसीम जानते

भारत कैश से लैस हुआ तो लुप्त हो जाएंगी यह कलाएं, रीतियां और रस्म-ओ-रिवाज़

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मोदी जी का क्या है, बड़ी बेफिक्री से नवम्बर की एक रात नेशनल चैनल पर नुमायां हो गए और जारी कर दिया 500 और 1000 के नोटों के रद्दी हो जाने का ऐलान। पूरा देश सन्न... यह क्या कर गए प्रधानमंत्री जी। कमाल की बात यह है कि पूरा का पूरा 9 नवम्बर का दिन निकल गया, न एक भी विपक्षी दल का बयान आया और ना किसी न्यूज़ एंकर को इस फैसले के विरुद्ध बोलते सुना गया। भई सद्मे से उबरने में वक्त तो लगता है ना...। लोगों को लगा था कोई नहीं, यह नोट जा रहे हैं तो क्या नए आ जाएंगे, और कुछ दिनों में नए नोटो से वहीं पुराना खेल, पुरानी आदतें शुरू कर देंगे। गृहणियां जिनका सालों का जमा धन एक ऐलान के झटके में निकल गया, सोच रही थीं कि उनकी कला तो ज़िन्दा है, नोट फिर जमा कर लेंगी। लेकिन हाय रे मोदी जी के मन की बात ना जानी उन्होंने..। प्रधानमंत्री जी तो कैश से लैस इकोनॉमी लागू करने की मंशा रखते हैं। यह तुगलकी फरमान जारी करने से पहले ज़रा सोच तो लिया होता प्रधानमंत्री जी कि जो कैश ही ना रहा तो हिन्दुस्तान की संस्कृति में रची-बसी बहुत सी कलाएं और रस्म-ओ-रिवाज़ तो लुप्त ही हो जाएंगे। आपके तो आगे-पीछे कोई है नहीं, ना ही आ

“कम्पार्टमेन्ट के आखिरी छोर की दीवार के पास शव एक के ऊपर एक लदे पड़े थे। ट्रेन के शौचालय जवान शवों से भरे थे जो सुरक्षित स्थान समझकर वहां छिपे होंगे...” – ‘ट्रेन टू पाकिस्तान’ के अंश…

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'ट्रेन  टू पाकिस्तान' खुशवंत सिंह द्वारा लिखी गई सबसे ज्यादा प्रसिद्ध किताब मानी जाती है, जिसमें उन्होंने देश विभाजन के समय सीमावर्ती गांवो के लोगों में धीरे-धीरे पनप रहे ज़हर, लोगों की दशा और मनोस्थिति का बेहतरीन और सजीव चित्रण किया है। इस उपन्यास की कहानी संक्षेप में इस प्रकार है-1987 की कहानी है जब भारत और पाकिस्तान का विभाजन होने वाला है। ऐसे में सीमा पर स्थित एक शांत गांव मनो माजरा, जिसकी पूरी दिनचर्या गांव के स्टेशन से सुबह-शाम और रात में गुजरने वाली ट्रेनों पर आधारित हैं, में अचानक स्थिति बदल जाती है। गांव के निवासियों तक सीमा पार रहने वाले मुस्लिमों द्वारा अन्य धर्मों के लोगों को लूटने, बेइज्जत करने और मारने के किस्से पहुंचने लगते हैं और तनाव बढ़ने लगता है। मामला तब और गंभीर हो जाता है पाकिस्तान से एक मुर्दों की ट्रेन आती हैं जिसमें एक भी व्यक्ति जीवित नहीं होता। सारे हिन्दुओं को सीमापार के मुसलमान मौत के घाट उतार चुके थे। इस हादसे के बाद गांव में लगातार बढ़ते तनाव और बिखरती कानून व्यवस्था से गुस्साए लोग इस बात का बदला लेने के लिए भारत से मुस्लिमों को लेकर पाकिस्त

क्या आपने बन्ना-बन्नी, लांगुरिया और खेल के गीतों का मज़ा लिया है. लेडीज़ संगीत का मतलब केवल डीजे पर डांस करना नहीं है..

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आजकल शादियों में लेडीज़ संगीत के नाम पर जो डीजे लगा दिया जाता है और सब लोग अपनी पसंद के गाने चुन-चुन कर उस पर डांस कर लेते हैं, वो तो संगीत है ही नहीं जनाब। लेडीज़ संगीत का असली मज़ा तो ढोलक की थाप पर सुर लेते बन्ने बन्नी, लागुंरिया, खेल और गालियों से भरे गानों में आता है। यकीन मानिए आप कितने भी अपमार्केट होने का दावा कर लें, पहले से रिहर्सल कर के डीजे के गानों पर डांस कर लें, लेकिन जब तक इन देसी लोकगीतों का मज़ा नहीं लेगें, लेडीज़ संगीत का मज़ा पूरा नहीं होगा। इन गानों में इतना अपनापन है, इतनी आम बोलचाल की भाषा और मज़ेदार छेड़खानियां हैं कि आप एक बार इन्हें सुनेंगे तो वाह-वाही किए बगैर नहीं रह पाएंगे। इन गानों की खासियत है इनमें सारे नातेदारों और रस्मों को शामिल किया जाना और इनके चुटीले बोल। जैसे कि आपस में गॉसिप करते हुए एक दूसरे से छेड़छाड़ की जा रही हो। शादी के खुशनुमा माहौल में दूल्हा-दुल्हन यानि बन्ना-बन्नी से लेकर, समधी -समधन, चाचियां, मामियां, ताईयां, भाभियां, देवर, देवरानियां, जेठ- जेठानियां.. किसी को भी इन गानों में बख्शा नहीं जाता। सबका तसल्ली से मज़ाक बनाया जाता है,