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Showing posts from November, 2016

तस्वीरों में : स्वीमिंग पूल पर छिटकी छठ पर्व की छठा

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मन चंगा तो स्वीमिंग पूल में गंगा...। मेट्रो शहरों की आधुनिक सोसाइटियों  के आस-पास ना तो नदियां हैं, ना तालाब और ना ही पोखर... लेकिन अपने राज्य और गांव को छोड़कर यहां बस चुके पूरबनिवासी ज़रूर हैं। यह शायद उनका अपने राज्य, संस्कृति और त्यौहारों से प्यार ही हैं, कि सुविधाओं के अभाव में भी लोग छठ पर्व मनाने और सूर्य भगवान को अर्घ्य देने का साधन ढूंढ ही लेते हैं। कहते हैं ना, जहां चाह, वहां राह...। यह बिहार के रहवासियों का छठ पर्व के प्रति उत्साह ही है कि सोसाइटी के स्वीमिंग पूल को ही पवित्र पोखर का रूप दे दिया गया । छठ पर्व मनाते लोग यहां स्वीमिंग पूल में खड़े होकर अस्ताचलगामी और उदयमान सूर्य को अर्घ्य देते नज़र आए। आप भी इन रंगीन तस्वीरों के ज़रिए स्वीमिंग पूल में मनते छठ उत्सव का नज़ारा लीजिए...   और स्वीमिंग पूल पर लग गया छठ का मेला नहाय खाय और खरना के बाद अस्ताचलगामी सूर्य भगवान को अर्घ्य देने पहुंचे भक्त ढोल-नगाड़े का इंतज़ाम, ताकि पूजा में कोई कमी ना रह जाए घर के बढ़े-बूढ़ों की कुशल देखरेख में सम्पन्न होती छठ पूजा मौसमी फलों, केले, दीपक, नारियल, ठेकुएं औ

कहीं बागों में बहार हैं, कहीं बाग उजाड़ है...

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गज़ब! 4 नवंबर, 2016 का एनडीटीवी प्राइम टाइम तो सचमुच अद्भुत था, अकल्पनीय, अविश्वस्नीय.. पूरे देश में जिस जिसने यह प्राइम टाइम देखा है उनसे विनती हैं कि आप इस कार्यक्रम की रिकॉर्डिंग पैन ड्राइव में लेकर जेब में रख लीजिए ताकि अगर किसी चोर को भी मिलें तो कम से कम वो नाटककार बनना सीख जाए...। बागों में बहार भी है...(सरकार के लिए) और बाग उजाड़ भी हैं ( एनडीटीवी).. सुबह से एनडीटीवी पर बैन के खिलाफ जो पूरे देश के मीडिया को एकजुट करने की अपीलें चल रहीं थीं और जिस जोर शोर से पूरे देश  (यहां गौरतलब है कि एनडीटीवी का देश प्रेस क्लब ऑफ इंडिया, एडीटर्स गिल्ड और कुछ बुद्धिजीवियों से पूरा हो जाता है) द्वारा इस बैन का विरोध करने संबंधी स्क्रॉल और खबरें दिखाईं जा रही थीं, उसे देखकर लगा कि ज़रूर रवीश जी कुछ ज़बरदस्त प्राइम टाइम लेकर आएंगे... लेकिन.... हर कानूनी विकल्प की तलाश करने का दावा करने वाले एनडीटीवी का यह प्राइम टाइम देखकर एक बात तो सिद्ध हो गई... कि अब कानून को अपनी आंखों पर बंधी पट्टी उतार देनी चाहिए। क्योंकि अब जिरहों, वादों, प्रतिवादों से खुद का बचाव करने का दौर चला गया, अब तो कान