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और महाराजा रीसाइकिल सिंह की आंखे खुल गईं...

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यूं तो डस्टबिनाबाद और रीसाइक्लाबाद दोनों ही राज्य पास पास थे। एक दूसरे के पड़ौसी। लेकिन रीसाइक्लाबाद राज्य के महाराजा रीसाइकिल सिंह को डस्टबिनाबाद राज्य और वहां के नागरिक- जो डस्टबिन कहलाते थे, बिल्कुल नहीं भाते थे। रीसाइक्लाबाद के लोग हमेशा ही डस्टबिनाबाद राज्य को खुद से कमतर और बेकार माना करते थे और उन्हें यह हरगिज़ पसन्द नहीं था कि उनके यहां से कोई भी डस्टबिनाबाद के लोगों से दोस्ती करे। दूसरी तरह डस्टबिनाबाद के नरेश कूड़ामल एक नम्र, भावुक एवं अच्छे दिल के इंसान थे जिन्हें अपने राज्य और प्रजा से बेहद प्यार था। उनका राज्य था भी अच्छा जिसके तीन तरफ कूड़े के ऊंचे पहाड़ थे और एक तरफ रीसाइक्लाबाद की सीमा। हालांकि खुद के राज्य को लेकर पड़ौसी राज्य रीसाइक्लाबाद का नज़रिया उन्हें कभी पसंद नहीं आया लेकिन फिर भी वो कुछ कहते नहीं थे। हमेशा खुश रहते थे। पृथ्वी के अन्य लोग जब भी डस्टबिनाबाद के पास से गुज़रते तो बड़ी हिकारत भरी नज़रों से उस राज्य को देखा करते थे। कोई उन्हें पसंद नहीं करता था। लेकिन इस सबके बावज़ूद नरेश कूड़ामल प्रसन्न रहते और अपने काम में लगे रहते।   पर एक दिन हद