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Showing posts from September, 2014

प्रधानमंत्री ने तो और भी बहुत कुछ कहा और स्पष्ट शब्दों में कहा.. भारतीय मुसलमान और अलकायदा से ऊपर उठकर तो देखो...

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हमारी परेशानी यह है कि हम कभी प्रधानमंत्री मोदी द्वारा मुसलमानों के लिए कहे गए कथन से आगे बढ़ते ही नहीं, इसलिए हमने सोमवार, 28 सितम्बर 2014 को काउंसिल ऑफ फॉरन रिलेशन्स में मोदी द्वारा कही गई बहुत सी बातों में से केवल इसे महत्व दिया कि -' भारत का मुसलमान अल कायदा को फेल कर देगा..।' और इस चक्कर में हमने कई महत्वपूर्ण मुद्दे छोड़ दिए जिनके बारे में बहुत ही साफ तौर पर और बेहद निडरता, बेबाकी और सफाई से प्रधानमंत्री ने अपनी बात की.., मत भूलिए कि यह एक बहुत महत्वपूर्ण मंच था जिस पर प्रधानमंत्री बोल रहे थे और उनका एक-एक शब्द केवल भारतीय मीडिया ही नहीं अमेरिकी मीडिया और दोनों देशों के बीच नीति निर्धारण करने वाले लोग सुन और देख रहे थे। भले ही आपको सर्च करने पर अमेरिकी अखबारों और मीडिया में इसके बारे में ज्यादा कुछ ना मिले, जिसकी वजह शायद यह हो सकती है कि अमेरिका जानबूझ कर प्रधानमंत्री मोदी की खबर को बहुत बड़ी नहीं बनने देना चाहता, लेकिन सच यह है उनकी हर बात और कथन को बहुत गौर से सुना, समझा और जज किया गया होगा। एक एक बात साफ तौर पर कहकर प्रधानमंत्री ने अपनी इच्छा और इरादा दोनों ज

बस एक क्लिक और घर बैठे खरीद लो ईद-उल-अज्हा पर कुर्बानी के लिए बकरा

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ओएलएक्स और क्विकर पर हो रही है बकरों की खरीद-फरोख्त, खरीददारों को घर बैठे कुर्बानी के लिए बकरे मिल रहे हैं और बिक्रीकरों को अच्छे दाम जी हां, अब तक कपड़े लत्तों से लेकर टीवी, फ्रिज और ऑनलाइन त्यौहारों के लिए खरीददारी तो आप ऑनलाइन करते ही थे, अब इस लिस्ट में बकरीद पर कुर्बानी के लिए खरीदे जाने वाले बकरे भी शामिल हो गए हैं। ओएलएक्स और क्विकर जैसी वेबसाइट्स पर लॉग इन करके आप पूरे देश में कहीं पर भी अपनी पसंद और बजट के हिसाब से घर बैठे बकरे खरीद सकते हैं, और यह भी ज़रूरी नहीं कि आप उसी शहर से बकरा खरीदें, चाहे तो किसी अन्य शहर से भी आप इंटरनेट साइट्स के जरिए बकरे खरीद सकते हैं। यहां पर कोई बकरा हैदराबाद से बिकने के लिए आया हुआ है, कोई दिल्ली से और कोई अजमेर, बैंगलोर या फिर राजस्थान से। क्विकर साइट पर दिल्ली की ऑनलाइन मंडी में 5,000 रुपए से एक 1 लाख रुपए तक के बकरे खरीद के लिए उपलब्ध हैं। यह बकरा दिल्ली के मालवीय नगर से हैं। इसकी कीमत 40,000 रुपए रखी गई है। बकरे की चार-पांच फोटो व अन्य जानकारी भी दी गई है, बाकी जानकारी दिए गए नंबर पर फोन करके प्राप्त की जा सकती है। 

ठंडी मौत...? कोल्ड ड्रिंक्स के रूप में धीमा ज़हर पी रहे हैं आप...

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- - हार्वर्ड स्कूल ऑफ पब्लिक हैल्थ की स्टडी से पता चला है कि अति मीठे सॉफ्ट ड्रिंक्स केवल मोटापा ही नहीं बढ़ाते बल्कि जान के दुश्मन भी हैं। मीठे सॉफ्ट ड्रिंक्स का सेवन पूरे विश्व में हर साल लगभग पौने दो लाख (1,80000) लोगों की मौत का कारण बनता हैं। इनके सेवन के चलते हर साल लगभग एक लाख तैंतीस हज़ार लोग डायबिटीज़ के शिकार होकर, लगभग 6000 लोग कैंसर का शिकार होकर और लगभग 44,000 लोग दिल की बीमारियों का शिकार होकर मर जाते हैं। इस स्टडी के परिणामों को अमेरिकन हार्ट एसोसिएशन की मीटिंग में प्रस्तुत किया गया था। (डेली मेल यूके की 19 मार्च 2013 की रिपोर्ट) -छत्तीसगढ़ स्थित दुर्ग, राजनन्दगांव और धमतारी जिलों के किसान बताते हैं कि वो अपने चावल के खेतों को कीटों से बचाने के लिए पेप्सी और कोक का इस्तमाल कर चुके हैं जो कि एक सफल प्रयोग साबित हुआ है। किसानों के अनुसार पानी में मिलाकर कोक और पेप्सी का फसल पर छिड़काव करना, कीटनाशकों के प्रयोग से कहीं ज्यादा सस्ता और सुलभ पड़ता है और इससे कीटों से फसल का बचाव भी हो जाता है। (बीबीसी न्यूज, 3 नवंबर 2004 की रिपोर्ट  http://news.bbc.co.uk/2/hi/south_asi

क्या है विक्रम सम्वत और क्यों है भारतीय पंचांग अंग्रेजी कैलेण्डर से बेहतर ?

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विक्रम संवत की शुरूआत उज्जैन के महाप्रतापी राजा विक्रमादित्य ने की थी। उन्होंने राजसत्ता संभालने का शुभारम्भ करने के लिए सृष्टि के पहले दिन अर्थात चैत्रा शुक्ल प्रतिपदा को चुना था। आज से 2069 वर्षों पूर्व वे उज्जैन की राजगद्दी पर बैठे थे और उस दिन की याद में उन्होंने अपने नाम पर विक्रम संवत चलाया था। यह संवत चन्द्रमा की गति (कला) पर आधरित है, इसलिए इसे चन्द्र वर्ष कहा जाता है। इसे समझने से पहले भारतीय पंचांग को समझना आवश्यक है- दिन, वार, महीना इत्यादि की जानकारी देने वाले अंग्रेजी कालपत्र को कैलेण्डर तथा भारतीय परम्परा वाले को कालपत्र को ‘पंचांग’ कहा जाता है। पंचांग आध्यात्मिक एवं वैज्ञानिक कालपत्र है। इसमें काल की गणना के पांच अंग हैं जिन्हें तिथि, वार, नक्षत्र, योग और करण कहा जाता है। इन पांच अंगों के आधार पर काल की गणना किये जाने के कारण भारतीय कैलेण्डर को ‘पंचांग’ नाम दिया गया है। पंचांग न केवल अंग्रेजी कैलेण्डर के समान किसी दिन विशेष को दर्शाता है, बल्कि खगोलशास्त्र के आधार पर यह उस दिन के पूरे शुभ-अशुभ काल और योग को भी दर्शाता है। पंचांग में बारह मास के एक वर्ष के प्रत्येक दिन

“नौसेना की नियुक्ति, नौकरी नहीं बल्कि जीने का तरीका है... जिसमें आप साल के 365 दिन, 24 घंटे देश की सेवा के लिए तैयार रहते हैं.."...

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 पंचकुला, हरियाणा के निवासी युवा रोहित मण्डरवाल भारतीय नौसेना की एक्जीक्यूटिव शाखा में सब लेफ्टिनेंट हैं और फिलहाल एझिमला, केरल में नियुक्त हैं। 23 साल के रोहित एक बेहद मेधावी छात्र रहे हैं। चंडीगढ़ इंजीनियरिंग कॉलेज से 78 फीसदी अंकों के साथ बीटेक उत्तीर्ण करने के बाद रोहित का सात मल्टीनेशनल कंपनियों में कैम्पस साक्षात्कार के जरिए चयन हुआ, लेकिन रोहित ने नौसेना में जाकर देशसेवा करने को प्राथमिकता दी। रोहित उन युवाओं का प्रतिनिधित्व करते हैं जो सफल है, मेधावी हैं, काबिल हैं और जोश से भरे हुए हैं, जो देशसेवा को सर्वोपरि मानते हैं और जिनके लिए जिंदगी केवल काटने का नहीं बल्कि उसे बेहतर तरीके से और अपनी शर्तों पर जीने का नाम है। हमने रोहित की पढ़ाई, रुचियों से लेकर नौसेना जैसा जोखिम भरा प्रॉफेशन चुनने के बारे में बातें की और उन्होंने बेहद बेबाकी और सरल तरीके से अपनी बातें रखीं। आप भी पढ़िए जोश और आंखो में सपने संजोए इस युवा नेवी ऑफिसर के विचार- अपनी रुचियों के बारे में कुछ बताईए। मेरी इंजीनियरिंग में बहुत रुचि है। मुझे यह विषय बेहद पसंद हैं। बीटेक करने के बाद कैम्पस सलेक्शन में ही मेरा स

बिहार को मिला ‘मोहन भार्गव’ ......लंदन की जगमगाती जिदंगी और लाखों की नौकरी छोड़, अपने पिछड़े गांव को एक आदर्श गांव बनाने के लिए हिन्दुस्तान लौट आए आनंद

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लेंकेस्टर यूनिवर्सिटी, लंदन में आनंद रामपुर गांव के किसान आनंद लंदन यूनिवर्सिटी के स्कॉलर से कटिहार के किसान तक और विदेश में बेफिक्र जिंदगी बसर करने से गांव में समेकित खेती करने तक एक व्यक्ति की जिंदगी में आमूल-चूल बदलाव की यह कहानी, सपनों के सफर कहानी है, ज़िद की कहानी है, जो चाहो उसे पाने की कहानी है...। हम आपके लिए लाए हैं बिहार के निवासी, आनंद चौधरी की दास्तान, जो असल जिंदगी में स्वदेस फिल्म के मोहन भार्गव को साकार कर रहे हैं। इन्होंने लंदन की लैकेंस्टर यूनिवर्सिटी से एमबीए किया और वहीं 15 लाख रुपए तन्ख्वाह की नौकरी कर रहे थे कि पिताजी के देहांत के कारण इन्हें भारत आना पड़ा। लेकिन जब आनंद ने यहां आकर अपने गांव का पिछड़ापन और खराब हालत देखी तो उन्होंने विदेश की नौकरी छोड़ अपने गांव के उत्थान के लिए काम करने का फैसला ले लिया। और अब आनंद अपने गांव को देश का पहला सर्व साधन संपन्न- पांच सितारा गांव बनाने में जुटे हैं... अपने पिछड़े गांव की किस्मत बदलने निकला एक एमबीए किसान.. सीढ़ियां उन्हें मुबारक, जिन्हें छत तक जाना है, जिनकी मंज़िल आसमां है, उन्हें रास्ता खुद

झारखंड की एक लड़की का विवाह कुत्ते से कराया गया, ताकि उसके ऊपर से बुरी आत्मा का साया टल जाए

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हमारे देश में एक कहावत है कि हर कुत्ते के दिन फिरते हैं... लेकिन सच तो यह है कि इस कहावत को कहने वाले ने भी नहीं सोचा होगा कि किसी कुत्ते के दिन इस कदर फिर सकते हैं जैसे कि झारखंड के इस लावारिस कुत्ते शेरू के फिर गए.. जी हां शेरू के दिन ऐसे फिरे हैं कि कि उसे 18 साल की सुंदर मंगली मुन्डा नाम की कन्या दुल्हन के रूप में मिल गई है...। यह कोई मज़ाक की बात नहीं है, अगर आपको भरोसा ना हो तस्वीरें और वीडियो देखिए। दरअसल झारखंड के सुदूर पूर्वी इलाके में बसे एक गांव की निवासी 18 साल की मंगली मुंडा ने शेरू से इसलिए शादी की है ताकि उसके ऊपर से बुरी आत्मा का साया टल जाए। गांव के ही एक गुरू ने मंगली के पिता को बताया था कि मंगली जिससे भी शादी करेगी वो अल्पायु होगा और उसकी शादी के कारण गांववासियों पर  मुसीबत आ सकती है क्योंकि मंगली के ऊपर बुरा साया है। इसी गुरु ने मंगली के पिता को सलाह दी थी कि अगर उसका विवाह किसी कुत्ते के साथ कर दिया जाए तो बुरा प्रभाव इस कुत्ते में चला जाएगा और गांव एवं मंगली की विपत्ति टल जाएगी। गुरू की बात मानते हुए मंगली के पिता अम्नुमुंडा उसके लिए एक स़ड़

दशकों से कब्रों में सो रहे इन मुर्दों को इनकी कब्रों से निकाल कर सामूहिक कब्र में फेंका गया, केवल इसलिए कि कब्र का मोटा किराया भरने के लिए इनके रिश्तेदारों के पास पैसे नहीं थे...

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यह कोई मल्टीफ्लोर सोसाइटी से झांकती बालकनियां नहीं बल्कि ग्वाटेमाला शहर का जनरल कब्रिस्तान है जहां एक के ऊपर एक कई मंजिलनुमा अंदाज में कब्रे हैं। यह कब्रें एक के ऊपर एक बने छोटे-छोटे तलघरों या तहखानों मे हैं जिन्हें अंग्रेजी में क्रिप्ट कहते हैं। इस तस्वीर में कब्रिस्तान के ऊपर जो गिद्ध मंडराता हुआ दिख रहा है, उसकी वजह है, खाने की तलाश... अगर आप यह सोच रहे हैें कि कब्रिस्तान में पत्थरों के अंदर बंद कब्रों से गिद्ध को खाना कैसे मुहैया हो सकता है, तो हम आपको बता दें, कि बिल्कुल हो सकता है। बल्कि ग्वाटेमाला के जनरल कब्रिस्तान में तो अक्सर गिद्ध मंडराते रहते हैं क्योंकि उन्हें यहां अक्सर खाना मुहैया होता रहता है। जिस तरह सोसाइटी के घरों में रहने वाले लोगों को मकानों का किराया भरना पड़ता है ठीक उसी तरह मरने के बाद इन सोसाइटीनुमा तंग कब्रों में रहने के लिए भी मृत लोगों के रिश्तेदारों को यह कब्रें लीज़ पर लेनी पड़ती हैं और साल दर साल उनका मोटा किराया चुकाना होता है। कई बार तो लोग मरने से पहले अपनी कब्रों के लिए पैसों का इंतज़ाम करके रख कर जाते हैं। और जैसे ही किसी कब्र की लीज़ खत्

बचपन की कविताएं... किसी कविता से जुड़ी कहानी, किसी कविता से जुड़ी रीत, किसी कविता से जुड़ी प्रीत... खो ना जाएं कहीं, इसलिए संजो कर रख ली हैं... :-)

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बचपन की कविताएं ऐसी ही होती हैं, जिनमें कहीं तीर होता है और कहीं तुक्का। कहीं कोई भी शब्द, लय या तान अपने आप आकर जुड़ जाती है। यह कविताएं हमें अपने बड़ो से मिली, उन्हें उनके बड़ों से और उन्हें उनके बड़ो से.. और पता नहीं कहां से हमारे बच्चे भी इन्हें खूब सीखते और गाते हैं। किसी किसी कविता में तो शब्दों का भी कोई मेल नहीं, कोई मतलब नहीं बनता.. बस फिर भी लय है, ताल है और मस्ती है... मतलब से मतलब भी किसे है.. इन्हें बोलने और गाने का आनंद ही सबसे बड़ी चीज़ है...  बचपन की गाड़ी वाली कविता पान बीड़ी सिगरेट, गाड़ी आई लेट गाड़ी ने दी सीटी, दो मरे टीटी, टीटी ने दिया तार, दो मरे थानेदार, थानेदार ने दी अर्जी, दो मरे दर्जी, दर्जी ने सिला सूट, दो मरे ऊंट, ऊंट ने पिया पानी, दो मर गए राजा और रानी.. और खतम हुई कहानी... (जब बच्चे कहानी सुनने की बहुत जिद किया करते थे, तो अक्सर उन्हें यह कविता दादियां या नानियां सुना दिया करती थीं। ) मोटू पेट मोटू पेट, सड़क पर लेट, आ गई गाड़ी,फट गया पेट, गाड़ी का नंबर एक सौ एक, गाड़ी पहुंची इंडिया गेट, इंडिया गेट से आई आवाज