प्रधानमंत्री ने तो और भी बहुत कुछ कहा और स्पष्ट शब्दों में कहा.. भारतीय मुसलमान और अलकायदा से ऊपर उठकर तो देखो...



हमारी परेशानी यह है कि हम कभी प्रधानमंत्री मोदी द्वारा मुसलमानों के लिए कहे गए कथन से आगे बढ़ते ही नहीं, इसलिए हमने सोमवार, 28 सितम्बर 2014 को काउंसिल ऑफ फॉरन रिलेशन्स में मोदी द्वारा कही गई बहुत सी बातों में से केवल इसे महत्व दिया कि -' भारत का मुसलमान अल कायदा को फेल कर देगा..।'

और इस चक्कर में हमने कई महत्वपूर्ण मुद्दे छोड़ दिए जिनके बारे में बहुत ही साफ तौर पर और बेहद निडरता, बेबाकी और सफाई से प्रधानमंत्री ने अपनी बात की.., मत भूलिए कि यह एक बहुत महत्वपूर्ण मंच था जिस पर प्रधानमंत्री बोल रहे थे और उनका एक-एक शब्द केवल भारतीय मीडिया ही नहीं अमेरिकी मीडिया और दोनों देशों के बीच नीति निर्धारण करने वाले लोग सुन और देख रहे थे। भले ही आपको सर्च करने पर अमेरिकी अखबारों और मीडिया में इसके बारे में ज्यादा कुछ ना मिले, जिसकी वजह शायद यह हो सकती है कि अमेरिका जानबूझ कर प्रधानमंत्री मोदी की खबर को बहुत बड़ी नहीं बनने देना चाहता, लेकिन सच यह है उनकी हर बात और कथन को बहुत गौर से सुना, समझा और जज किया गया होगा।

एक एक बात साफ तौर पर कहकर प्रधानमंत्री ने अपनी इच्छा और इरादा दोनों ज़ाहिर कर दिए।


अपने ऊपर बम गिरता है तब सबको आतंकवाद का पता चलता है.., गुड टैररिज़म और बैड टैररिज़म कुछ नहीं होता... 

प्रधानमंत्री ने बहुत ही साफ और चुटीले अंदाज में अमेरिका से कह दिया कि जब तक और देशों में आतंकवाद होता रहा, अमेरिका को कोई फर्क नहीं पड़ा और वो उसे लॉ एंड ऑर्डर की समस्या कहकर टालता रहा लेकिन जब ट्रेड सेंटर पर बम गिरा, तब अमेरिका को समझ आया कि आतंकवाद क्या है। उन्होंने गुड टैररिज़म और बैड टैररिज़म की बात कहकर सीधे सीधे अमेरिकी नीतियों पर व्ययंग कसा, जो कुछ आतंकवादी घटनाओं को गुड टैररिज़म की श्रेणी में रखती हैं।


भारत में गरीबों की संख्या बहुत है और उनके लिए फूड सिक्योरिटी होना ज़रूरी है, ट्रेड फेसिलिटेशल भी ज़रूरी है लेकिन दोनों चीज़ों को साथ लेकर चलना है.. इसलिए यह नहीं हो सकता कि यह हम पहले कर लें, और दूसरा काम बाद में...  

- यह कहकर प्रधानमंत्री ने स्पष्ट कर दिया कि अगर अमेरिका यह आस लगाए बैठा है कि भारत का मुद्दा देखे बगैर वो भारत को ट्रेड फेसिलिटेशन एग्रीमेंट पर साइन करने के लिए मना लेगा तो यह गलत है, उसे भारत की चिन्ताओं को भी देखना और समझना होगा तभी बात बन सकती है।



चीन-भारत सीमा विवाद मुद्दे पर किसी बाहरी मध्यस्थता की ज़रूरत नहीं- 

प्रधानमंत्री ने स्पष्ट कर दिया कि उन्हें अपने देश के विवाद सुलझाने आते हैं और वो अपने पड़ौसी देश चीन के साथ सीमा विवाद सुलझाने के लिए किसी बाहरी संस्था की मध्यस्थता स्वीकार नहीं करेंगे।




सार्क देशों के लिए सैटेलाइट- 

प्रधानमंत्री ने बताया कि भारत सार्क देशों के लिए एक सेटेलाइट विकसित कर रहा है जिसके विकास के बाद सभी सार्क देशों के बीच सहयोग बढ़ेगा और मैत्रीपूर्ण संबंधों में प्रगाढ़ता आएगी। यह कहकर प्रधानमंत्री ने एक तरह से यह भी संदेश दिया कि अगर विकसित देश विकासशील देशों के साथ नहीं आते हैं तो विकासशील देश भी आपस में सहयोग पूर्ण रवैया अपनाकर एक बड़ी शक्ति के रूप में उभर सकते हैं। जिसके लिए उन्हें केवल आपसी सहयोग और समझ की ज़रूरत है ना कि किसी विकसित देश की सहायता की।


'प्रधानमंत्री जी मैंने आपसे सीखा कि किसी सवाल का जवाब कैसे नहीं देना है.. '


मंच पर सवाल पूछ रहे अधिकारी ने प्रधानमंत्री मोदी को धन्यवाद देते हुए आखिरी में जब यह कहा कि- 'one thing I learned from you Prime Minister, how to not answer a question...'  तो मोदी जी हंस दिए और उन्होंने कहां थैंक यू..। यहां इस बात का ज़िक्र करना इसलिए ज़रूरी है कि इस दौरान बहुत से ऐसे सवाल पूछे गए थे जिनका सीधे-सीधे ताल्लुक भारत के अंदरूनी मुद्दों  और नीतिगत फैसलों से था और जिनका प्रधानमंत्री मोदी ने बड़े ही टालू अंदाज़ में घुमा-फिरा कर जवाब दिया और कुछ के जवाब वो पूरी तरह से गोल कर गए ;-) .. और इसके लिए वो बधाई के पात्र हैं क्योंकि चाणक्य नीति कहती है कि किसी भी बाहरी संस्था या व्यक्ति को ना तो अपने अंदरूनी मुद्दों और नीतियों के बारे में बताना चाहिए और ना ही अपने संभावित फैसलों के बारे में। प्रधानमंत्री जानते थे कि इस मंच से वो अगर कुछ बोलेंगे तो उसे बेहद गम्भीरता से लिया जाएगा, इसलिए उन्होंने अपने पत्ते खोले बिना बात टाल दी और केवल वहीं बातें कहीं जो वो कहना चाहते थे या बताना चाहते थे।


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