“महात्मा गांधी की हत्या 30 अक्टूबर 1948 को हुई थी”..... “दूसरे विश्व युद्ध में जापान ने अमेरिका पर परमाणु हमला किया था” ...... “देश के विभाजन के बाद ‘इस्लामिक इस्लामाबाद’ नाम से एक नए देश का गठन किया गया”.....


यह मोदी के गुजरात का इतिहास है जनाब, सरकारी पाठ्य पुस्तकों में छपे हैं उपरोक्त सभी तथ्य, छात्र इन्हें ही पढ़ और सीख रहे हैं



अगर गुजरात के सरकारी स्कूल का कोई छात्र आपसे कहे कि द्वितीय विश्व युद्ध के समय अमेरिका ने जापान पर नहीं बल्कि जापान ने अमेरिका पर परमाणु बम गिराया था, तो
भूल कर भी उसे सही करने की कोशिश मत करिए, वरना कहीं ऐसा ना हो कि वो यह कहने लगे कि.. गलत तो आप हैं, हम सही हैं क्योंकि हमारी किताब में तो यहीं लिखा है...। और यह भी हो सकता है कि वो आपको किताब में लिखा यह तथ्य दिखा भी दे और फिर आपको ही आपके ज्ञान पर संदेह होने लगे..।

जी हुज़ूर, गुजरात के सरकारी स्कूलों में ऐसी ही गलत बातें छात्रों को पढ़ाई और सिखाई जा रही हैं। कक्षा छठी, सातवीं और आठवीं में पढ़ाई जा रही सामाजिक विज्ञान की किताबों के इतिहास खंड में ये सारी गलत बातें लिखी हैं। और ये तो मात्र कुछ छोटे से उदाहरण है। वास्तव में तो इन किताबों में 120 के लगभग तथ्यात्मक गलतियां हैं और वो भी ऐसी गलतियां जो अर्थ का अनर्थ करने के साथ-साथ पूरे इतिहास को उल्टा-पुल्टा कर देने के लिए काफी हैं। इन किताबों से अगर आपने इतिहास पढ़ लिया तो आपका दिमाग चकरा जाएगा।  

और सबसे महत्वपूर्ण बात तो यह हैं, कि समाचार पत्रों और मीडिया चैनल्स द्वारा गुजरात सरकार के संज्ञान में ये बातें और गलतियां लाए जाने के बावजूद सरकार ने इन किताबों को वापस नहीं लिया है और बच्चे बदस्तूर गलत इतिहास पढ़ रहे हैं। इतिहास के ये पाठ अंग्रेजी सरकारी स्कूलों के लगभग 50,000 छात्र-छात्राओं को पढ़ाए जा रहे हैं।

शिक्षा विशेषज्ञों के पैनल ने तैयार की है यह पुस्तक


ये स्कूली किताबें गुजरात काउंसिल ऑफ एजूकेशनल रिसर्च एंड ट्रेनिंग (जीसीईआरटी) और गुजरात स्टेट बोर्ड फॉर स्कूल टेक्स्ट बुक्स (जीएसबीएसटी) के विशेषज्ञों के पैनल द्वारा अध्ययन के लिए तैयार की गईं हैं। यह पैनल विभिन्न कक्षाओं के छात्रों के लिए कोर्स निर्धारित करता है।

यह भी जान लीजिए कि इन्हीं किताबों में प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी के जीवन के ऊपर एक पाठ शामिल करने का प्रस्ताव दिया गया था, जिसे प्रधानमंत्री ने खुद मना कर दिया। उस समय यह बात हमें प्रधानमंत्री की उदारता लग रही थी लेकिन इन किताबों में गलतियों को देखते हुए तो लगता है कि प्रधानमंत्री ने बहुत सोच समझकर यथार्थपरक निर्णय लिया। भला कौन चाहेगा कि उसके जीवन के बारे में भी गलत बातें पढ़ाई जाएं।

हांलाकि मीडिया में आई खबरों के बाद राज्य सरकार की नींद टूटी है और सरकार ने प्राइवेट स्कूलों के विशेषज्ञों के एक पैनल को इन किताबों को सही करने के लिए नियुक्त भी किया है, लेकिन नई और सही किताबें नए शैक्षणिक सत्र की शुरूआत तक ही बाज़ारों में उपलब्ध हो पाएंगी और तब तक छात्र इन्हीं किताबों से गलत इतिहास ही पढ़ेंगे और पढ़ रहे हैं। 

यह सभी किताबें गुजराती किताबों से अनुवादित की गई हैं और बहुत ही खराब तरीके से अनुवादित हैं। आईआईएम, अहमदाबाद के पूर्व डायरेक्टर समीर बरुआ- जिन्हें गुजरात की स्कूली किताबों में गलतियों के ऊपर कई आर्टिकल्स लिखने के बाद राज्य सरकार द्वारा 2001 में इन किताबों की देख रेख के लिए नियुक्त किया गया था, के मुताबिक- गुजरात स्कूल किताबों के लेखक कॉम्पीटेन्ट नहीं हैं। गुजरात राज्य में मुख्य अध्ययन सामग्री हमेशा गुजराती में रही और इसके अंग्रेजी अनुवाद बहुत ही खराब क्वालिटी के होते हैं।  


आईए नज़र डालते हैं किताबों की कुछ और गड़बड़ियों पर –


 -यह सभी जानते हैं कि द्वितीय विश्वयुद्ध के दौरान अमेरिका ने जापान पर एटम बम गिराया था, जिसके कारण हिरोशिमा और नागाशाकी शहर पूरी तरह तबाह हो गए थे, लेकिन किताबों में इसके उलट पढ़ाया जा रहा है। गुजरात बोर्ड की 8वीं कक्षा की इतिहास की किताब के मुताबिक जापान ने अमेरिका पर परमाण्विक हमला किया था। 

-महात्मा गांधी की पुण्यतिथि 30 जनवरी 1948 है, लेकिन गुजरात के स्कूलों में बच्चों को यह तिथि 30 अक्टूबर 1948 पढ़ाई जा रही है।

-पुस्तक में दादाभाई नौरोजी, सुरेन्द्रनाथ बनर्जी, गोपाल कृष्ण गोखले को कांग्रेस का ‘एक्स्ट्रीमिस्ट' सदस्य बताया गया है, जबकि वे नरमपंथी थे।

- किताब में लिखा है कि 1947 में विभाजन के बाद एक नए देश का जन्म हुआ जिसका नाम था इस्लामिक इस्लामाबाद और इसकी राजधानी हिंदूकुश की पहाड़ियों में खैबर घाट नाम से थी।

-किताब के अनुसार होम रूल आंदोलन आज़ादी के बाद 1961 में शुरू हुआ था जबकि यह वास्तव में 1916 में शुरू हुआ था।

-इस किताब के अनुसार संयुक्त राष्ट्र के संगठन यूनेस्को का पूरा नाम “यूनाइटेड नेशंस एजुकेशनल सोसायटी एंड चिल्ड्रन ऑर्गेनाइज़ेशन है।

-किताब के दो चैप्टर गांधी जी को समर्पित हैं. इनमें लिखा है कि महात्मा गांधी ने पहला सत्याग्रह आश्रम अहमदाबाद में मई 1925 में स्थापित किया जबकि इसकी शुरूआत का सही साल 1915 है।

-बाल गंगाधर तिलक ने अंग्रेजी में मराठी नाम का अखबार निकाला था।

-सभी दक्षिण भारतीय मद्रासी होते हैं।

-इन किताबों में केवल गलतियां ही नहीं हैं बल्कि किताबों में बहुत सी जगह ऐसी बातें कहीं गई हैं जो छात्रों की सोच को संकुचित करने का काम करती हैं जैसे कि-
कक्षा 8 की सामाजिक विज्ञान की किताब के अनुसार- चूंकि पूर्वीभारत में बहुत बारिश होती है, वहां लोग एड़ियों (टखनों) से ऊपर कपड़े पहनते हैं, यहां महिलाएं अजीब अंदाज़ में साड़ियां पहनती हैं
-और इडली और डोसा उत्तर भारत में प्रसिद्ध हैं। मद्रासी भोजन बहुत प्रसिद्ध है

-एक अन्य संदर्भ में किताब में पुरी की रथ यात्रा को उत्तर भारतीय त्योहारों से जोड़ दिया गया है और ओणम और दीवाली को केरल से जोड़ा गया है।

-अंग्रेजी को भी नहीं बख्शा गया है। कक्षा 6 की टेक्स्ट बुक का एक सैम्पल देखिए- "You might have heared, read and seen that the Earth is round. Whereas, you stay on the Earth, you can not come to know the shape of Earth; because the Earth is too much vast. 

"Why we do not feel that the Earth is round? Is the Earth really To whom it is like? Just imagine, round? The Moon-uncle is telling. Come on to my surface and see from the edge. The travellers of the space had taken the photographs of the Earth from the space - see it." 

-एक और उदाहरण देखिए- इंसान को गेहुं, जौ आदि जैसे अनाज अपने आप भारत के विभिन्न भागों की मिट्टी से प्राप्त हो गए। तो भारत के लोगों ने (उस समय के) उनको जमा कर लिया और उन अनाजों को भोजन के लिए सुरक्षित रख लिया। वो एक दूसरे से अक्सर मिलते थे जिससे सोशलिज्म बढ़ा।

ये गड़बड़ियां ऐसी हैं कि इतिहास की शक्ल ही बदल दें। किताब की गलतियों के बारे में छपी एक रिपोर्ट के अनुसार आठवी कक्षा की सामाजिक विज्ञान की 124 पन्ने की किताब में 59 तथ्यात्मक ग‌ल‌तियां हैं। अंग्रेजी में छपी इस किताब में 100 से अधिक वर्तनी की गलतियां हैं। इसके अलावा क्रांतिकारियों और समाजसुधारकों के नामों में भी तमाम ग‌लतियां की गई हैं।

तो जनाब अब आपको पता चला कि नरेन्द्र मोदी का इतिहास ज्ञान इतना कमज़ोर क्यों हैं...? अब तक मीडिया कई बार रैलियों के दौरान उनके द्वारा गलत ऐतिहासिक तथ्यों को रखने पर अंगुली उठा चुका है। लेकिन सच्चाई तो यह है कि गड़बड़ी उनके ज्ञान में नहीं, बल्कि उनके राज्य में पढ़ाई जा रही पाठ्य पुस्तकों में हैं, क्या पता मोदी जी ने भी उन्हीं पुस्तकों को बांचा हो...।



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