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Showing posts from May, 2014

मैं आशान्वित हूं कि मोदी जी बदलाव लाएंगे...

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आज  दिल बहुत खुश है। कुछ भी एक पत्रकार या बुद्धिजीवी के तौर पर लिखने या कहने का मन नहीं...। और कृपया मेरे इस लिखे को एक बुद्धजीवी की नज़र से देखें या जज भी ना करें। आज मैं बहुत खुश हूं, मोदी जी ने जो इतना अच्छा भाषण दिया, उससे खुश हूं, मोदी जी ने संसद में घुसने से पहले मंदिर की सीढ़ियों की तरह जो सजदा किया, उससे खुश हूं, उनकी ऊर्जा और आशावादिता की बातों से खुश हूं...।  हम लोग चाहे कितनी भी बुद्धिजीवियों की तरह बातें कर लें जो हर काम के पीछे का मकसद ढूंढने की कोशिश में लगे रहते हैं, लेकिन यह सच है कि हमारे दिल हिन्दुस्तानी हैं। बुद्धि और दुनियादारी, हमारी भावनाओं पर हावी ज़रूर हो गई है, लेकिन यह सच है कि भावनाएं आज भी हमारे दिलों में, उनकी जड़ों में जिन्दा हैं। हम उस देश के वासी हैं जहां हमें दिल की सुनने और दिमाग की करने की शिक्षा मिली है... दिमाग का स्थान भले ही सबसे ऊंचा हो लेकिन अहमियत हम दिल को ही देते हैं... और आज मेरा दिल की सुनने और लिखने का मन है..। और दिल पर हिन्दुस्तानियत हावी है, देशप्रेम हावी है, आंखों में वो दृश्य जिसने नरेन्द्र मोदी को संसद की सीढ़ियों का नमन करते

सुपरमार्केट के एन्ट्री गेट से लेकर बिलिंग काउन्टर तक, हर कदम पर फैला होता है ग्राहकों को फंसाने के लिए बुनी गईं मनोवैज्ञानिक तरकीबों का जाल जिससे आप ज्यादा से ज्यादा खरीददारी करने के लिए प्रेरित हो सकें... सुपरमार्केट के लुभावने ऑफर्स और कस्टमर फ्रेंडली माहौल के पीछे का कड़वा सच...

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आपके साथ कई बार ऐसा होता होगा ना, जब आप कुछ निश्चित राशि लेकर, और घर के सामान की लिस्ट बनाकर विशाल, बिग बाज़ार, सस्ता बाज़ार, ईज़ी डे या रिलायंस जैसे सुपरमार्केट जाते हैं.., और जब वापस आते हैं तो बहुत सारे पैसे खर्च करके बहुत सारी चीज़े खरीद लाते हैं। आटा लेने जाते हैं, लेकिन साथ में चिप्स, बटर, चॉकलेट्स, मैगी और सूप खरीद लाते हैं। 200 रुपए का सामान लेने जाते हैं और 2000 रुपए का सामान लेकर आ जाते हैं.. और जब कोई आपसे पूछता है कि तुम तो केवल दालें लेने गए थे, इतना सारा सामान कैसे ले आए, तो आप कहते हैं कि यार ऑफर में सस्ता मिल गया आगे काम आ जाएगा...।  यकीन जानिए ऐसा करने वाले आप अकेले नहीं, अगर आप अपने जानने वाले मित्रों से पूछेंगे तो वो भी यहीं कहेंगे कि उनके साथ भी कुछ ऐसा ही होता है वो खरीदने कुछ और जाते हैं और खरीद कुछ और लाते हैं या फिर जितना सोच कर जाते हैं उससे दोगुना-चौगुना खर्च करके आते हैं। इसे हम इम्पल्सिव बाइंग या हिन्दी में कहें तो   प्रेरित या जल्दबाज़ी की खरीददारी कहते हैं। यह वो खरीददारी है, जिसके बारे में आपने सोचा नहीं होता लेकिन सुपरमार्केट जाकर वहां

एमबीए करने के बाद चार दोस्तों ने लाखों की नौकरी छोड़ कर खोली गन्ने के रस की दुकान, पूरे भारत में गन्ने के रस के प्रति जागरूकता लाने और गन्नावाला कैफे श्रंखला स्थापित करने की चाह...

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अंकित, विकास, संदीप और अमित (बांए से दाएं) “ क्या ?   गन्ने का रस  !!!!  सबसे पहले आप हरी भरी गीली घास के मैदान का स्वाद महसूस करते हैं... उसके बाद मिठास धीरे-धीरे जेहन और स्वाद में उतरती है ..यह ना गरिष्ठ है और ना बिल्कुल सादा... यह रंगीला और चमकदार भी नहीं है... 300 मिलीलीटर के गिलास में कोई आकर्षण नहीं छिपा है... आप कभी इसके आदी नहीं बनेंगे.. यह सॉफ्ट ड्रिंक से कहीं ज्यादा बेहतरी से आपकी प्यास बुझाता है और इसमें प्राकृतिक चीज़ों के अलावा और कुछ भी नहीं..यह गर्ल-नेक्स्ट-डोर-पेय है ”  – ( www.gannnawala.in  से) गन्ने के रस का ऐसा विवरण आपने आज तक कहीं भी नहीं पढ़ा होगा। एक कवि की कविता की भांति गन्ने के रस का ऐसा वर्णन केवल वहीं कर सकते हैं जिन्होंने गन्ने के रस को अपने जीवन का आधार बनाया हो। जी हां, यहां हम बात कर रहे हैं ‘जी’ से ‘गन्नेवाले’ रायपुर निवासी- संदीप जैन, विकास खन्ना, अमित अग्रवाल और अंकित सरावगी नाम के चार मित्रों की, जिन्होंने एमबीए की डिग्री हासिल करने के बाद लाखों के सालाना पैकेज पर लगभग एक वर्ष तक नौकरी की और फिर अपनी-अपनी नौकरियां छोड़कर अपने ही गृह न