विश्व में सबसे बड़ा दुग्ध उत्पादक देश भारत, अपने इन्हीं दुधारू पशुओं के मांस के सहारे विश्व के सबसे बड़े मांस निर्यातकों में से एक बना




क्या आपको डराते नहीं यह आंकड़े...

  • · देश ने 2012-13 में विश्व को 17,400.59 करोड़ रुपये मूल्य के 11069.6 लाख टन भैंस के मांस के उत्पादों का निर्यात किया है
  • · उत्तर प्रदेश सरकार ने इस वर्ष प्रदेश में 8 नए और अत्याधुनिक बूचड़खाने खोलने को मंज़ूरी दी हैं जिनमें 10000 से 20 हज़ार दुधारू पशु प्रतिदिन काटे जाएंगे।
  • · 2013 दिसंबर में जारी फिक्की की रिपोर्ट बताती है कि उत्तर प्रदेश 67 प्रतिशत शेयर के साथ भारत से भैंस के मांस यानि बीफ का सबसे बड़ा निर्यातक बन गया है। कृष्ण कन्हैया की जन्मभूमि वाले प्रदेश में गाय भैंसों की संख्या सबसे ज्यादा होने के कारण यहां बूचड़खाने-सह मास-संसाधन इकाईयों की संख्या भी सबसे ज्यादा है। राज्य में बीफ उत्पादन लगातार बढ़ रहा है और 2010 में तो यह चालीस फीसदी तक बढ़ गया है। 
  • · बीफ उत्पादन में उत्तर प्रदेश के बाद आंध्र प्रदेश, महाराष्ट्र और पंजाब का नंबंर आता है।
  • · इन बीफ उत्पादों को मुख्य तौर पर वियतनाम सोशल रिपब्लिक, मलेशिया, थाइलैंड, मिश्र अरब रिपब्लिक, सऊदी अरेबिया और जॉर्डन में निर्यात किया जाता है। 
  • · सरकार की 12वीं पंचवर्षीय योजना 2012-17 के लिए भारत सरकार के पशुपालन व डेयरी विभाग की सलाहकार समिति ने योजना आयोग को एक रिपोर्ट सौंपी है, जिसमें कहा गया है, ‘‘वर्तमान में गो-मांस के निर्यात पर प्रतिबंध है। अतः आयात-निर्यात नीति में आवश्यक संशोधन कर गो-मांस के निर्यात को स्वीकृति दी जाए।’’
  • · सरकारी तंत्र में पशुओं की बड़े पैमाने पर हत्या कर उसके मांस को विश्व भर में बेचने की योजना बन रही है। योजना के अंतर्गत पशुवध के आंकड़ों को तेजी से बढ़ाना, कार्यरत कत्लखानों का आधुनिकीकरण करना, ज्यादा से ज्यादा यांत्रिक कत्लखाने बनाना, मांस के निर्यात में आने वाले अवरोध हटाना और वह सब करना है जिससे भारत एक अग्रणी मांस निर्यातक देश बन सके।
  • · भैंसों को मांस के लिए काटने पर भारत सरकार अनुदान भी देती है जिसका सीधा दुष्प्रभाव दुग्ध उत्पादन पर पड़ता है। 

भारत की आयात- निर्यात नीति में पिछले 63 सालों से गो-मांस के निर्यात पर प्रतिबंध है। भारतीय संविधान के अनुच्छेद 48 में निहित राज्य के नीति निर्देशक सिद्धांत गोवंश की हत्या को पूरी तरह प्रतिबंधित करते हैं। इसके अलावा अनेक न्यायालयों व सर्वोच्च न्यायालय के निर्णयों में भी गोवंश की हत्या व गो-मांस के निर्यात पर रोक लगाई जा चुकी है। सरकारी आंकड़े तो यहीं बताते हैं कि इस समय देश में गाय को छोड़कर अन्य पशुओं जैसे भैंस, भेंड़, बकरी आदि के मांस का निर्यात किया जा रहा है। लेकिन सच्चाई यह है कि वर्तमान में देश में कुल 36 हजार कत्लखाने हैं, जिसमें से 10 स्वचालित हैं और इनमें प्रतिदिन 2 लाख 50 हजार पशुओं को काट दिया जाता है जिनमें गौमाता की बड़ी संख्या भी शामिल है। एक अनुमान के अनुसार एक वर्ष में 3 लाख टन मीट का उत्पादन किया जाता है, जिसके लिए 1 करोड़ गायों-भैंसों और 4 करोड़ भेड़-बकरियों को मार दिया जाता है।

दुनिया के धनी देश भारत को सबसे बड़ा मांस निर्यातक देश बनाने में जुटे हुए हैं। भारत के कृषि मंत्री का मानना है कि अन्य वस्तुओं के उत्पादन में बहुत खर्च आता है, लेकिन मांस एक ऐसा व्यापार है जिसमें हमारा कुछ भी खर्च नहीं होता है। उसे बूचड़खाने में भेजने की देर है बस, फिर तो डॉलर, यूरो और रुपयों से आपकी झोली भर जाएगी। चूंकि पशु का केवल मांस ही नहीं बिकता है बल्कि उसकी खाल, बाल, हड्डियां, आतें, खुर, सींग और चर्बी सभी बाजार में ऊंचे दामों पर बिकते हैं। मुम्बई के एक बड़े मांस निर्यातक के अनुसार, विपुल संख्या में पशुधन भारत के लिए पेट्रोल का कुआं है। जब चाहो उसका उपयोग करो।

इस समय दुनिया के 20 ऐसे देश हैं जिन्हें वह नियमित रूप से मांस की आपूर्ति करती है। इनमें पाकिस्तान का नाम भी शामिल है।  भारत से मांस खरीदने वाले प्रमुख देशों में मिस्र, मलेशिया, कुवैत, सऊदी अरब अमीरात, जोर्डन, ईरान, ओमान, लेबनॉन, पाकिस्तान और अजरबैजान मुस्लिम राष्ट्र हैं, जबकि वियतनाम, फिलिपाइंस, अंगोला, जोर्जिया, सेनेगल, घाना और आइवरी कोस्ट गैर मुस्लिम राष्ट्र हैं


इकोनोमिक टाइम्स में प्रकाशित समाचार के अनुसार, सरकार की अदूरदर्शी नीतियों से मांस की मांग में भारी वृद्धि हुई है। नई दिल्ली स्थित डेयरी के एक अधिकारी ने बतलाया कि अप्रैल 2008 से 2009 के बीच भैंस के मांस निर्यात में पिछले वर्ष की तुलना में 45 प्रतिशत की वृद्धि हुई है। जब चारा और अन्य वस्तु मंहगी होती है तो भैंस का मालिक उसे सीधे कत्लखाने भेज देता है।

सुनिए क्या कहती है एपीडा की रिपोर्ट

एपीडा यानि एग्रीकल्चरल एंड प्रोसेस्ड फूड प्रोडक्ट्स एक्सपोर्ट डेवेलपमेंट अथॉरिटी की वेबसाइट पर प्रकाशित मीट मेनुअल के चैप्टर 2 में कहा गया है भारत में अपार पशुधन होने के बावजूद गलत धारणाओं के चलते मांस उत्पादकता में पिछड़ा हुआ है। हांलाकि भारत विश्व में सबसे बड़ा दुग्ध उत्पादक (117 मिलियन टन) देश होने का दर्जा हासिल कर चुका है लेकिन मांस उत्पाद जो कि डेयरी उत्पादकता से जुड़ा हुआ है अभी भी 6.5 टन मिलियन टन उत्पाद के साथ पांचवे स्थान पर है। पिछड़े समुदायो और गरीब किसानों की आर्थिक स्थिति से जुड़े होने के बावजूद मांस उत्पाद भारत के राजनेताओ, नीति निर्माताओं, वैज्ञानिकों और व्यापारियों का ध्यान पूरी तरह से नहीं खींच पाएं हैं। मांस उत्पाद करीबी तौर पर चमड़ा उद्योग से जुड़ा हुआ है जिसमें भारत इटली के बाद दूसरा स्थान प्राप्त कर चुका है। और अगर सरकार इस पर सही ध्यान दे तो विश्व चमड़ा और मांस दोनों की उत्पादकता और निर्यात में विश्व में प्रथम स्थान प्राप्त कर सकता है।

सोचिए गाय अगर नहीं रहीं तो क्या होगा। भारत फिलहाल विश्व में सबसे बड़ा दुग्ध उत्पादक देश है लेकिन जिस तेज़ी से यहां बूचड़खाने खुल रहे हैं और रोज़ गाएं काटी जा रही हैं, वो दिन दूर नहीं जब हमें दरअसल दूध का अन्य मुल्कों से आयात करना पड़ेगा..

बीफ उत्पादन का अर्थशास्त्र

भारत में गाय का मांस 120 रुपए किलो खुलेआम बिक रहा है। एक गाय-भैंस या बैल के कटने पर लगभग 350 किलो मांस निकलता है जबकि चमड़े और हड्डियों की कीमत अलग से मिलती है। एक पशु 3000 रुपए से 9000 रुपए तक में ग्रामीणों से खरीदा जाता है। लेकिन उसे काटने के बाद 350 किलो मांस निकलता है। भारत में उस मांस का दाम हुआ- 120x 350 यानि 42,000 रुपए। जबकि चमड़े का दाम हुआ एक हज़ार रुपए। विदेशों में निर्यात करने पर यहीं मांस तीन से चार गुना दामों पर बिकता है। अगर पशु खरीद का मूल्य (9000 रुपए) काट भी दिया जाए तो एक पशु काटने पर लगभग 34,000 रुपए का मुनाफा होता है।

औसतन एक बूचड़खाने में रोज़ाना 10,000 से 15,000 तक पशु कट रहे हैं। अगर 12,000 पशु भी मानें तो एक कत्लखाने के मालिक को हर रोज़ 34,000 X 12,000 यानि लगभग चालीस करोड़ रोज़ का मुनाफा होता है। उस पर सरकार से अनुदान मिलता है सो अलग। ऐसे में कोई भी बूचड़खाने को क्यों बन्द करना चाहेगा।


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