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एक बलिदान चेतक का, एक बलिदान झाला का और एक बलिदान महाराणा का.............! "जब याद करूं हल्दीघाटी, नैणां में रगत उतर आवैं, सुख-दुख रो साथी चेतकड़ो, सूती सी हूक जगा जावैं"

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बचपन से इस वीरभोग्या वसुन्धरा के कई किस्से पढ़े, सुने, देखे, जाने। यू पी बोर्ड की पांचवी कक्षा में पढ़ाई जाने वाली "ज्ञान भारती" से दसवीं कक्षा की "गद्य गरिमा" तक राजाओं और राणाओं की हिम्मत और वीरता की कहानियां और कविताए पढ़ी। राजपूती वीरांगनाओ और ललनाओं के अदम्य साहस और बलिदान के पाठ पढ़े... । लेकिन सारी वीर रस में पगी कविताएं और किस्से मिलकर भी आत्मगौरव और देश प्रेम की वो अनुभूति नहीं दे सके जो राजस्थान की अरावली पर्वत श्रंखला में बसी हल्दीघाटी की एक झलक ने दे दी। कहते हैं रणबांकुरों के खून से तिलक होने के बाद हल्दीघाटी की मिट्टी चंदन बन गई वो हल्दीघाटी जिसकी मिट्टी का रंग हल्दी की तरह पीला है, वो हल्दीघाटी जिससे होकर महाराणा प्रताप के रणबांकुरों की सेना ने अकबर की विशाल सेना के छक्के छुड़ाए थे और वो हल्दीघाटी जहां की पथरीली भूमि पर चेतक ने अपनी स्वामिभक्ति की मिसाल कायम की थी। माउंट आबू की तरफ से उदयपुर जाते हुए लगभग 15 किलोमीटर पहले हल्दीघाटी जाने के लिए एक रास्ता कटता है जो गोकुंडा और कुम्भलगढ़ से होते हुए आगे नाथद्वारा तक जाता है। यहीं बीच में रास्ते