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Showing posts from September, 2013

इनसे मिलिए....3000 रुपए में कृपा बेचने वाले निर्मल बाबा !!!!

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लाल रंग की बड़ी स्टेज पर फूलों की मालाओं की सजावट, दोनों तरफ शानदार मेजे, एक तरफ की मेज पर फूल और दूसरी तरफ की मेज पर बिसलरी की पानी की बोतल और कांच का गिलास... बीचो-बीच सिंहासननुमा वृहद् कुर्सी पर अधलेटे, सिल्क का कुर्ता पहने और बढ़िया शॉल कंधे पर डाले निर्मल बाबाजी.... बाबाजी के समागम में पूरा हॉल भरा हुआ है, कुर्सियों पर बाबाजी के भक्तों में लगभग सभी सभ्रांत, सम्पन्न परिवारों के पढ़े लिखे लोग...  और हाथों में माइक लेकर अपनी परेशानियां "पूज्य निर्मल बाबा" को बताते भक्तगण....और वहीं हॉल के चारों ओर मौजूद काले कपड़े पहने और गले में लाल फीते वाला आइडेंटिटी कार्ड डाले बाउंसर नुमा दिखने वाले बाबाजी के ब़ॉडीगार्ड्स। निर्मल बाबा के दरबार में भक्त एक-एक कर के माइक पकड़कर अपनी परेशानी पूछते हैं और बाबा कभी काले रंग का बैग रखने की सलाह में तो कभी गरीबों को कुल्फी खिलाने की बात कहकर तो कभी किसी भक्त को होटल में खाना खाने की आज्ञा देकर दोनों हाथों से "कृपा" बांटते हैं.... । निर्मल बाबा की बात और बाबाओं से बिल्कुल अलग है। इनके समागम में ऐसे कोई ऐरा-गैरा नहीं जा सकत

दो बूंद ज़िंदगी की..या दो बूंद अपंगता की...?

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पोलियो टीकाकरण अभियान में भाग लीजिए, बच्चों को दीजिए बस दो बूंद ज़िंदगी की... आपने बहुत बार बॉलीवुड महानायक अमिताभ बच्चन को टीवी पर यह संदेश देते सुना होगा। लगभग दो दशकों से भारत को पूर्ण रूप से पोलियो मुक्त देश बनाने के लिए पोलियो टीकाकरण अभियान जोर-शोर से चलाया जा रहा है। साल में दो बार या कभी तीन या चार बार ओरल पोलियो की दो बूंदे पिलाने का अभियान चलाया जाता है जिसमें पूरे देश के लोग बढ़-चढ़ कर हिस्सा लेते हैं। देश पोलियो मुक्त राष्ट्र बनने जा रहा है। पिछले दो सालो से भारत में एक भी पोलियो का मामला नहीं आया.....यह सब बहुत लुभावनी बातें है लेकिन इन सबके पीछे एक बेहद खतरनाक सच्चाई छिपी है।  क्या आप जानते हैं कि भले ही हिन्दुस्तान में पोलियो खत्म हो रहा है लेकिन पोलियो से मिलती-जुलती, लेकिन उससे कहीं ज्यादा खतरनाक   "नॉन पोलियो एक्यूट फ्लैसिड पैरालिसिस (एएफपी)" के मामले लगातार बढ़ते जा रहे हैं और जिसका कारण पोलियो टीकाकरण अभियान के तहत बच्चों को पिलाई जा रहीं पोलियो वैक्सीन की वो दो बूंदे हैं जिनमें कमज़ोर लेकिन ज़िन्दा पोलियो वायरस उपस्थित रहता है।  2012 में प्रका

घरों में काम करने वाली बाईयों, नौकरानियों और हाउसकीपिंग स्टाफ के लिए ट्रेनिंग स्कूल...

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अब घर में काम करने वाली बाईयों को गृहकार्य में दक्ष बनाने के लिए भी एक स्कूल की शुरूआत हूई है.....घरों में काम करने की इच्छुक महिलाएं, अपनी शिक्षा, काम के अनुभव और कार्य कुशलता के मुताबिक इस स्कूल में अत्याधुनिक  गैजेट्स से साफ-सफाई करने, बच्चों को संभालने, नए-नए तरीके के खाना और नाश्ते बनाने, टेलीफोन पर इंग्लिश में तहज़ीब से बात करने और यहां तक कि कॉकटेल पार्टीज़ के समय ड्रिंक्स और ग्लासेज को संभालने का भी प्रशिक्षण ले सकती हैं...। प्रशिक्षण को देने वाले प्रौफेशनल प्रशिक्षक इन हाउस मेड्स को काम-काज ढंग से संभालने के साथ-साथ आत्मविश्वास से रहने, तहज़ीब से बात करने और व्यक्तिगत साफ-सफाई व ग्रूमिंग की भी ट्रेनिंग देते हैं। इस ट्रेनिंग को पूरा करने के बाद अपनी इन घरेलू काम सीखने वाली छात्राओं को उनकी योग्यता के अनुसार अच्छे घरों में अच्छी तन्ख्वाह पर नौकरी दिलवाने की जिम्मेदारी भी इसी एजेंसी की होती है। कंपनी के अनुसार एक बार घरेलू कार्य का प्रशिक्षण लेने के बाद यह आत्मविश्वास से भरपूर आधुनिक बाईयां छः हज़ार रुपए महीने से 35,000 रुपए महीने तक कमा सकती हैं और साथ ही विदेशों और बड़े

आधुनिक भारत की एक बच्ची के सपने, सीखें और सरोकार...

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 साक्षात्कार की कड़ी में इस बार प्रस्तुत है देश की राजधानी दिल्ली में पढ़ने वाली एक ग्यारह वर्ष की बच्ची का साक्षात्कार।  आधुनिक भारत और  कम्प्यूटर युग में जीने वाले बच्चों की इच्छाएं, उम्मीदें, रोष और आक्रोश को लेकर जब हमने एक ग्यारह साल की बच्ची से सवाल पूछे तो बहुत रोचक जवाब मिले। इनकी दुनिया बिल्कुल अलग होती है, उसमें सपने भी है, आगे बढ़ने की इच्छा भी और यथार्थवादिता भी। यह बच्चे अपनी नज़र से दुनिया को देखते हैं, अपने तरीके से उसकी विवेचना करते हैं और अपने तरीके से ही उसमें ढलने और उसे बदलने की चाहत भी रखते हैं। यह जो कहते हैं मन से कहते हैं। झूठ बोलना और लाग-लपेट करना इन्हें नहीं आता.... किसी भी बात से इन्हें जज मत कीजिए। बस इस बच्ची के सपनों, सीखों और सरोकारों के बारे में पढ़िए, अपना बचपन याद कीजिए और आनंद लीजिए... आपका परिचय.. मेरा नाम साक्षी बंसल है। मैं डीपीएस स्कूल, दिल्ली में सिक्स्थ क्लास में पढ़ती हूं। मेरे पापा और मम्मी दोनों डॉक्टर हैं और मैं उनको बहुत प्यार करती हूं। और मैं मार्स और स्विटज़लैंड घूमना चाहती हूं। क्या बात है..., आपकी हॉबीज़.. डांस करना, गाना गाना,

ईकोनॉमिक हिटमैन... विकासशील देशों को विकसित देशों का गुलाम बनाने वाले पेशेवर...

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किसी भी देश की रीढ़ होती है उसकी अर्थव्यवस्था, और ईकोनॉमिक हिटमैन इसी रीढ़ को तोड़कर विकासशील देशों को विकसित देशों का गुलाम बनने पर मजबूर करते हैं। यह वो पेशेवर हैं जिनका काम थर्ड वर्ल्ड कन्ट्रीज़ को आर्थिक रूप से इतना कमज़ोर करना है कि यह राष्ट्र खुद अपने प्राकृतिक संसाधनों का नियंत्रण धनवान मुल्कों के हाथ में देने के लिए तैयार हो जाए जो मुफ्त में उनका भरपूर दोहन कर सकें।  मद्रास कैफे में एक शब्द सुना- इकोनॉमिक हिटमैन। शब्द नया था। पहली बार सुना था। जानने की इच्छा हुई तो गूगल पर ढूंढा और जो चौंकाने वाली जानकारियां मिली उन्हें सबके साथ शेयर कर रही हूं। गूगल पर 'ईकॉनोमिक हिटमैन' की कोई परिभाषा नहीं है। लेकिन विकीपीडिया पर जॉन पर्किन्स की आत्मकथा "कन्फैशन्स ऑफ एन ईकोनॉमिक हिटमैन" की विवेचना दी गई  है जिसमें पर्किन्स ने ईकोनॉमिक हिटमैन क्या होता है, यह समझाया है। ईकोनॉमिक हिटमैन काफी अच्छी सेलरी पाने वाले वो लोग होते हैं जो पूरे विश्व के कई देशों के अरबों-खरबों रुपए धोखे से हड़पने का काम करते हैं। यह लोग विश्व बैंक, यूनाईटेज स्टेट्स एजेंसी फॉर इंटरनेशनल डेव