पहचानिए यह कारीगरी किस चीज़ पर की गई है...


क्या आप जानते हैं कि शतरंज के ये खूबसूरत मोहरे किस चीज़ के बने हैं....?



अब इन नक्काशीदार कटारों को देखिए। यह भी उसी से बने हैं जिससे शतरंज के मोहरे बने हैं। सोचिए क्या है यह...


अब इन्हें देखिए यह की चेन्स, जूड़ा पिन्स, कटारें सबकुछ उसी चीज़ से बने हुए हैं लेकिन आप अब तक नहीं पहचान पाए ना क्या है यह...



अब देखिए इन सफेद चीज़ों के टुकड़ों को। इन्हीं से बनी हैं यह सारी चीज़े, यह ज्वेलरी भी। क्या यह सेलम है, संगमरमर, खड़िया या कुछ और? चलिए बताते हैं...


यह ऊंट की हड्डियां हैं, "केमल बोन्स"। जी हां ऊपर दिखाई गई सारी चीज़े केमल बोन्स से बनी हैं। कुछ साल पहले हाथी दांत की खरीद-फरोख्त पर प्रतिबन्ध लगा दिया गया था तब से अधिकतर कलाकार केमल बोन्स से चीज़े बनाने लगे हैं। 


केमल बोन्स हाथी दांत की तरफ दूधिया सफेद नहीं होते इसलिए पहले उन्हें पहले मनचाहे आकार में काटकर संगमरमर के पाउडर के साथ उबाला जाता है ताकि इसे साफ सफेद रंग मिल सके। इसके बाद बोन को हाइड्रोक्सल और पानी से साफ करके इस पर पॉलिश की जाती है जिसके बाद ये कारीगरी के काबिल बनता है।


यह लखनऊ से अब्दुल मोतमीम खान साहब हैं जो केमल बोन्स की कारीगरी में माहिर हैं। इनके यहां पीढ़ियों से यह काम होता है। इनके पिताजी और दादाजी हाथीदांत की कारीगरी करते थे लेकिन हाथीदांत की बिक्री पर प्रतिबन्ध लगने के बाद यह केमल बोन्स इस्तमाल करने लगे हैं। केमल बोन्स से नक्काशीदार चीज़े बनाने में काफी समय लगता है कई बार छः महीने तक।  


खान साहब दिल्ली के नेशनल क्राफ्ट म्यूज़ियम में आमंत्रित किए गए हैं जहां यह अपना स्टॉल लगाते हैं और केमल बोन्स से बनी चीज़ों की बिक्री करते हैं। 


केमल बोन से बनी ज्वेलरी भारत ही नहीं पाकिस्तान और सोमालिया में भी काफी प्रसिद्ध है और बनाई जाती है। भारत में मुख्यतः उड़ीसा और राजस्थान में केमल बोन कार्विंग का काम होता है। इस ज्वेलरी की शुरुआती कीमत 30 रूपए से हज़ारों रुपए तक है। वहीं केमल बोन के अन्य सामान काफी ज्यादा महंगे मिलते हैं। 


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