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विशुद्ध ऊर्जा का रूप हैं विचार... और सोच पर टिकी हैं खुशियां....?

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क्या हम खुद अपने भाग्य के निर्धारक हैं? क्या खुश रहना या दुखी रहना पूरी तरह से हमारे हाथ में है? क्या परिस्थितियों का इसमें कोई हाथ नहीं? क्या हम चाहे तो सिर्फ अच्छी सोच रखकर विपरीत परिस्थितियों को अपनी ओर कर सकते हैं और खुश रह सकते हैं.....? कुछ समय पहले जब मैं काफी तनाव से गुज़र रही थी, मेरी एक दोस्त ने मुझे एक प्रसिद्ध किताब के बारे में बताया.."सीक्रेट्स"... और उसे पढ़ने के लिए कहा। किताब तो खैर मैं नहीं पढ़ पाई लेकिन उस किताब के बारे में काफी कुछ पढ़ा और जो वो किताब कहती है काफी हद तो वो मेरे समझ में आ गया। जब मैंने उसके बारे में सोचा तो मुझे काफी बाते सही लगी। मैंने जाना कि दरअसल हम ही अपनी खुशी और दुख के ज़िम्मेदार हैं। और जो हम इस दुनिया को देते हैं हमें वहीं वापस मिलता है.....। इन निष्कर्षों से पहले मैं यह बताना चाहती हूं कि उस किताब के ज़रिए क्या बातें मैंने जानी और समझी... 1. हमारी सोच दरअसल विशुद्ध ऊर्जा होती है। जो कुछ भी हम सोचते हैं वो मन के द्वारा निस्तारित ऊर्जा का रुप होता है जो हमारे द्वारा इस यूनिवर्स में पहुंचती है। अगर हम कुछ अच्छा सोचते हैं तो पॉ