तब लोगों ने तंदूर का खाना तक खाना छोड़ दिया था...

तब मैं शायद नाइन्थ में थी। आज भी याद है, मैं स्कूल जाने के लिए तैयार हो रही थी कि अचानक पापा की तेज़ आवाज़ सुनाई दी..".हद हो गई यह तो। पत्नी को मारकर तंदूर में जला दिया...।" जब यह शब्द कानों में पड़े तो तुरंत पापा के पास आई। वो अमर उजाला का दूसरा पेज पढ़ रहे थे जिस पर पूरी खबर विस्तार से छपी थी। नैना साहनी, सुशील शर्मा और 'उस' तंदूर की फोटो छपी थी। जब पापा ने पेपर छोड़ा तब मैंने उस घटना को पूरा पढ़ा। पेपर में पूरी घटना विस्तार से ब्लैक एंड व्हाइट फोटो के साथ छपी थी। उसमें लिखा था कि कांग्रेसी नेता ने अपनी पत्नी के टुकड़े करके अपने ही रेस्टोरेंट के तंदूर में जला दिए...

इतना खतरनाक और वीभत्स हत्याकांड था यह जिसके बारे में इससे पहले ना तो मैंने कभी पढ़ा था और ना ही सुना था। जब मैं स्कूल पहुंची तब भी दो अध्यापिकाएं इसी के बारे में चर्चा कर रही थीं। तब चौबीस घंटे वाले बहुत सारे न्यूज़ चैनल्स नहीं होते थे सिर्फ दूरदर्शन पर रात को न्यूज़ आती थी इसलिए अधिकतर लोगों को सारी डिटेल्स अखबार पढ़कर ही पता चलती थी और इसके बावजूद यह खबर आग की तरह फैली थी।

काफी दिनों तक यह खबर अखबार की सुर्खियों में रही।  इसे तंदूर कांड का नाम दे दिया गया था।मुझे अच्छी तरह से याद है कि इस खबर को पढ़ने के बाद लोगों को तंदूर से घृणा हो गई थी। अखबार में अक्सर यह खबरे छपती थी कि बहुत सारे लोगो ने तो तंदूर का खाना खाना ही छोड़ दिया था।

तब तक जहां तक मुझे याद है इस बात का जिक्र ज्यादा नहीं था कि सुशील शर्मा ने नैना साहनी की पहले गोली मार कर हत्या की थी। बस तंदूर में टुकड़े करके जलाने का जिक्र था। जो बड़े ठंडे दिमाग और क्रूरता से हत्या के साक्ष्य मिटाने के लिए किया गया था। इस मामले में उसके रसोईए और मैनेजर का भी जिक्र था जिन्होंने इस काम में उसकी सहायता की थी।

पति द्वारा इस क्रूरता से अपनी पत्नी को मारने के कारण तो यह केस सुर्खियों में था ही इसके अलावा जो एक और बात थी वो यह कि नैना साहनी पायलट का प्रशिक्षण ले चुकी थी। विदेश में रह चुकी थी। मतलब वो एक आधुनिक और पढ़ी लिखी महिला थी जिसने अपनी मर्ज़ी से प्रेमविवाह किया था। और सुशील शर्मा कांग्रेसी नेता था। यानि दोनों ही सभ्य, पढ़े लिखे और आधुनिक समाज का प्रतिनिधित्व करते थे और सभ्य समाज मे इस तरह की क्रूरता पहली बार सामने आई थी।

और मैं आपको बता दूं कि उस समय नेताओं के भ्रष्टाचार, दुर्वव्यवहार, हत्याओं और अपराधों के मामले इतने आम नहीं हुआ करते थे जितने कि आज होते हैं और हर दूसरे दिन हम किसी अपराध में किसी नेता की भूमिका के बारे में सुनते हैं। इसलिए भी यह मामला बेहद अहम हो गया था क्योंकि इसमें एक युवा कांग्रेसी नेता की भूमिका थी।

 तब हर मीटिंग, किटी पार्टी और और गली मोहल्लों और पान की दुकानों पर होने वाले गॉसिप्स में यह केस ही डिस्कस हुआ करता था और लोग इस तंदूरकांड से इतने दहशतजदां थे कि तंदूर का खाना खाना पसंद नहीं करते थे।


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